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रणजीत के बेटे ने कहा-19 साल बाद भी पटाखों की आवाज डराती है, याद आ जाता पिता का गोलियों से छलनी चेहरा: पिता की जंग पूरी हुई

डेरा प्रबंधन कमेटी के सदस्य रहे रणजीत सिंह (ranjit singh) की हत्या के मामले में राम रहीम (ram raheem) समेत 5 दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली है। रणजीत सिंह के बेटे जगसीर सिंह (jagsir singh) ने इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ी। कोर्ट (court) का फैसला आने के बाद उन्होंने कहा कि दोषियों को सजा मिलने से उनके पिता की जंग पूरी हो गई है।

जगसीर सिंह ने कहा कि उन्हें दीवाली के पटाखों तक से डर लगता है। पटाखों की आवाज उन्हें फिर वह खौफनाक मंजर याद दिला देती है, इसलिए 19 साल से दीवाली (diwali) नहीं मना पाए हैं। पटाखों की आवाज सुनकर और पिता के गोलियों से छलनी चेहरे की याद आते ही आज भी उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पिता की मौत पर फैसला आया है इसलिए अब अपने इस दुख को सबसे साझा करना चाहता हूं।

पिता की हत्या के वक्त 7 साल थी उम्र
वारदात के समय मैं 7 साल का था और कोचिंग से क्लास खत्म होने के बाद घर पहुंचा था। मां ने बताया कि पिताजी खेत में काम कर रहे मजदूरों के लिए चाय लेकर गए हैं। इसके बाद मैं खेल में मस्त हो गया।

कुछ देर बाद पता चला कि गांव में किसी की गोली मारकर हत्या हुई है। मां सहित घर के दूसरे सदस्य अनहोनी की आशंका से खेत की ओर भागे। इस बात से काफी परेशान हो गया और खेत की ओर चल दिया। खेत के पास पहुंचा तो देखा कि भीड़ जमा है और मां रो रही है। साथ में खड़े दादा जोगिंदर सिंह (joginder singh) मां को ढांढस बंधा रहे थे।

पहचान नहीं पा रहा था कि मेरे पिता हैं…
जगसीर के मुताबिक, काफी देर बाद भीड़ को हटाकर देखा तो वहां मंजर देखकर होश उड़ गए। पापा का गोलियों से छलनी चेहरा दिखा। पहचान भी नहीं पा रहा था कि वे मेरे पिता हैं। मां ने गले से लगा लिया और घर की ओर चलने लगी। मां से पूछा कि ये पापा हैं तो मां ने कहा नहीं बेटा कोई और है।

मैं सो गया, सुबह जब उठा तो देखा कि घर के बाहर भीड़ है और सब रो रहे हैं। मां भी रो रही है, मैं पास गया और बोला क्या हुआ मां। मां ने मुझे गले लगा लिया, बोली कि बेटा पापा चले गए और रोने लगी। यह सीन आज भी मेरे जेहन में जिंदा है। ​​​​​​जगसीर सिंह आंसू पोछते हुए कहते हैं कि आज जब फैसला आया है, इसने उस कई साल पुराने खौफनाक मंजर से राहत दी है।

दादा जिंदा होते तो अच्छा होता
जगसीर सिंह कहते हैं कि आज दादा जिंदा नहीं हैं। 2016 में उनकी मौत हो गई। उनके बेटे की हत्या का फैसला 19 साल बाद आया है। जगसीर ने बताया कि यदि दादा जिंदा होते तो उन्हें भी अच्छा लगता। उन्होंने बेटे की हत्या के दोषियों को सजा दिलाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।

जगसीर ने बताया कि सुबूत जुटाने के लिए उन्हें कई बार दूसरे पक्ष से धमकियां भी मिलीं। दादाजी ने इस केस को अंजाम तक पहुंचाने में निर्णायक भूमिका निभाई।

घर जुटी रिश्तेदारों की भीड़, सुरक्षा भी बढ़ी
जगसीर के मुताबिक, पिता की मौत के जिम्मेदार लोगों को सजा मिली है। सुबह से ही रिश्तेदार और शुभचिंतक (well wishers) घर पहुंच रहे हैं। हालात को देखते हुए जिला प्रशासन (district administration) भी सक्रिय हो गया है। जगसीर ने बताया कि घर की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। घर के चारों ओर पुलिसकर्मी तैनात हैं। सुकून है कि अब सब कुछ ठीक हो रहा है।

जगसीर सिंह ने कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर भरोसा था। उम्मीद थी कि अदालत पिता के दोषियों को सख्त सजा सुनाएगी। न्यायपालिका ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला सुनाया है। ऐसे लोग जिन्हें समाज में लाखों लोग पूजते हैं, वह ऐसा काम करता है, तो उसे समाज में रहने का कोई हक नहीं।

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