सब्जी बेच रहा नेशनल खेलों में मेडल जीतने वाला शख्स: मैडल की लिस्ट इतनी बड़ी के हैरान रह जाओगे जान कर

चरखी दादरी : स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी और फिर नेशनल खेलों में मेडल जीतने के बावजूद एक अभागा युवा सब्जी मंडी में मासाखोर बन सब्जी बेच रहा है। परिवार की हालत अच्छी नहीं होने के कारण खेलों के दौरान भी कुछ आगे नहीं बढ़ पाया। खेलों को छोड़ कर नौकरी की तलाश में जुट गया, वहां भी निराशा ही हाथ लगी। 6-7 साल सरकारी नौकरी तो क्या डीसी रेट की नौकरी के लिए दौड़ धूप करने बाद आखिरकार सब्जी मंडी में सब्जी बेचने को मजबूर हो गया। हो भी क्यों ना। घर और चूल्हा भी चलाना है। सरकार की नई खेल नीति आने के बाद दयाकिशन के प्रमाण पत्रों का ग्रेडेशन भी नहीं हो पा रहा है।

चरखी दादरी। खिलाड़ी दयाकिशन अपने मेडल दिखाते हुए। - Dainik Bhaskar

प्रेम नगर निवासी 34 साल के युवक दयाकिशन अहलावत ने अपने स्कूली और कॉलेज के समय में एथलेटिक्स में अच्छे हाथ आजमाए और कामयाबी भी मिली। लेकिन सुविधाओं के अभाव में वह कुछ खास आगे नहीं बढ़ पाया। पांच साल के दौरान भिवानी साईं के हॉस्टल में रहकर प्रेक्टिस की। यूनिवर्सिटी और नेशनल के इंटर जोनल यूथ खेलों में पदक तक जीते। 2002 के यमुनानगर में हुई खेलों में उन्होंने बेस्ट एथलीट का खिताब भी जीता। लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया।

नई सब्जी मंडी में मासाखोर बनकर सब्जी बेचता खिलाड़ी दयाकिशन।

नई सब्जी मंडी में मासाखोर बनकर सब्जी बेचता खिलाड़ी दयाकिशन।

एक बीगा जमीन में उगाता रहा है सब्जी : दयाकिशन दिल्ली बाइपास पर अपनी एक बीगा जमीन में सब्जी लगाने का कार्य करने लगा। सब्जियों को तोड़कर वह हर रोज सब्जी में आढ़तियों को बेचकर आता था। हालांकि सब्जी से कुछ खास कमाई नहीं हो पा रही थी, लेकिन घर का चूल्हा जरूर जलता था। इस बार उसने पालक लगाई हुई थी। बारिश के कारण जमीन में जलभराव अधिक हो गया तो पालक खराब हो गई।

नासमझी के कारण नहीं करवा पाया ग्रेडेशन
जिस समय दयाकिशन अपने खेलों में मस्त था। अनेक प्रकार के प्रमाण पत्र उसको हासिल हो चुके थे। बस नासमझी के कारण उस समय ग्रेडेशन सर्टिफिकेट तैयार नहीं करवा पाया। इसके बाद 2018-19 में सरकार ने खेल नीति में बदलाव करते हुए ग्रेडेशन की पॉलिसी भी चेंज कर दी। इस पाॅलिसी में दयाकिशन के जीते गए सभी प्रमाण पत्र मात्र कागज के टुकड़े साबित हो रहे हैं।

मंडी की फड़ पर बेच रहा सब्जी
दयाकिशन के खेत में सब्जी खराब होने के बाद घर पर बैठ नहीं सकता। पैसा कमाना भी जरूरी है। इसलिए उसने मंडी में मासाखोर का कार्य शुरू कर दिया। हर दिन अल सुबह सब्जी मंडी पहुंच जाता है। यहां आढ़तियों से सब्जी लेकर फड़ पर लगाकर मंडी में आने वाले ग्राहकों को सब्जी बेचने का कार्य करता है। दोपहर तक उसे 250-300 रुपये कमाई हो पाती है।

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