जाट आरक्षण आंदोलन हिंसा : 31 अक्तूबर तक सरकार को सौंपी जाएगी रिपोर्ट

चंडीगढ़ : पांच वर्षों की लंबी जद्दोजहद के बाद हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन (jat reservation protest) की हिंसा की जांच के लिए बनाए गए झा कमीशन (jha commission) की रिपोर्ट अब 31 अक्तूबर तक सरकार को सौंप दी जाएगी। वजह साफ है कि सरकार ने 31 अक्तूबर तक ही झा कमीशन का कार्यकाल तय किया है। गृह मंत्री अनिल विज (anil vij) के तल्ख रवैए के बाद इस बार सरकार ने कार्यकाल बढ़ाने से साफ मना कर दिया है। अप्रैल 2016 से अब तक आधा दर्जन से ज्यादा बार कमीशन (commission) का कार्यकाल बढ़ाया जा चुका है।

जबकि इसी आंदोलन में झा कमीशन से अलग अफसरों की भूमिका के लिए बनाई गई प्रकाश कमेटी (prakash committee) की रिपोर्ट उसी दौरान तय समय में दी जा चुकी है जिसको लेकर प्रदेश के कई अफसरों पर गाज गिरी तो विपक्ष ने सरकार (government) पर जमकर निशाना साधा था। अहम यह है कि कांग्रेस नेता प्रो. वीरेंद्र ने झा कमीशन के गठन को हाईकोर्ट (high court) में चैलेंज किया है जिसकी सुनवाई अभी लंबित है। लिहाजा हाईकोर्ट में उक्त मामले का निपटारा होने के बाद ही सरकार की ओर से रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी।

गौरतलब है कि फरवरी 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन में हुए उपद्रव की जांच के लिए सरकार ने पहले रिटायर्ड डी.जी.पी. प्रकाश सिंह की अध्यक्षता में कमेटी गठित की थी। उसके कुछ समय बाद ही हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस एस.एन. झा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय कमीशन का गठन किया गया था।

इस कमीशन को रोहतक, झज्जर, सोनीपत, जींद, हिसार, कैथल और भिवानी में दंगों से हुए जानमाल के नुक्सान का पूरा आंकलन करने, तोड़-फोड़ और लूटपाट की घटनाओं और तथ्यों को सार्वजनिक करने के अलावा सबसे अहम सामाजिक ताने-बाने को खराब करने के लिए रचे गए कथित षड्यंत्र को बेनकाब करते हुए सरकार को 6 महीने में रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था। लेकिन हर बार समय बढ़ता गया और तब से अब तक कमीशन जांच में जुटा हुआ है। 

हुड्डा के करीबी प्रो. वीरेंद्र ने कमीशन को हाईकोर्ट में किया है चैलेंज  
पिछले 5 वर्षों में कमीशन की ओर से लगभग सभी गवाही और सुनवाई की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी प्रो. वीरेंद्र सिंह का एक मामला हाईकोर्ट में लंबित है जिसमें कमीशन संबंधित दस्तावेज कोर्ट भी पेश कर चुका है। कोविड के कारण इस मामले की सुनवाई लंबे समय से लंबित है। बताया गया कि प्रो. वीरेंद्र ने इस मामले को हाईकोर्ट में चैलेंज किया है क्योंकि आंदोलन के दौरान वीरेंद्र की एक ऑडियो क्लिप सामने आई थी। कमीशन की ओर से 97 गवाहों को बुलाया गया। जबकि 31 में से 7 शिकायकर्ताओं ने भी 13 गवाह कमीशन के सामने पेश किए हैं। 


पांच लोगों को संदिग्ध मानते हुए जारी किया था नोटिस  
कमीशन की ओर से सभी गवाहों और सबूतों के आधार पर पांच लोगों को इस उपद्रव में संदिग्ध मानते हुए उन्हें नोटिस जारी किया। इनमें अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक, प्रो. वीरेंद्र सिंह, सुदीप कलकल, मनोज दुहन और कप्तान मान सिंह शामिल हैं। इन सभी को कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट-1952 की धारा 8-बी के तहत नोटिस देकर पक्ष रखने को कहा। सभी ने अपना पक्ष भी रखा, लेकिन प्रो. वीरेंद्र सिंह ने कमीशन को ही हाईकोर्ट में चैलेंज किया। उन्होंने कोर्ट में यह भी कहा कि जब इसी मामले में उनके खिलाफ पुलिस में केस दर्ज है तो कमीशन में लाने की जरूरत ही नहीं है।  

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