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हरियाणा की भर्तियों में सामाजिक-आर्थिक मानदंड के अंकों पर HC का बड़ा फैसला, इन अभ्यर्थियों को नहीं मिलेगा

चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा High Court ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि अगर किसी को उसके माता-पिता ने बेदखल कर दिया है तो भी वह सामाजिक आर्थिक मानदंडों के तहत पांच अतिरिक्त अंकों का दावा नहीं कर सकता। Court ने सवाल उठाया कि सामाजिक-आर्थिक मानदंड का लाभ उठाने के बाद याची फिर से अपने माता-पिता के साथ सही संबंध बना सकता है क्योंकि इस तरह के दावे की वास्तविकता को निर्धारित करने का कोई तरीका नहीं है।

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नहीं मिलेंगे सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के अंक

हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए एक उम्मीदवार ने प्रदेश सरकार की नीति के तहत सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के तहत पांच अतिरिक्त अंकों का दावा इस आधार पर किया था कि उसका परिवार से कोई संबंध नहीं है। उसके माता-पिता ने उसे कानूनी तौर पर संपत्ति व सभी तरह से बेदखल किया हुआ है। हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह याची की इस दलील से असहमत है कि माता-पिता द्वारा उसे बेदखल करने के चलते अब उसके परिवार का कोई कोई सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं है। वह इस नाते सामाजिक-आर्थिक मानदंड का लाभ लेने का अधिकारी है।

हाई कोर्ट ने दिया फैसला

कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि याची केवल सामाजिक-आर्थिक मानदंड का लाभ उठाने के लिए एक हलफनामा दायर करता है कि उसके माता-पिता ने उसे बेदखल कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के तहत पांच अतिरिक्त अंक देने का नियम उन जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए बनाया है, जिनके परिवार का कोई सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं है और न कभी रहा। लेकिन इस मामले में याची का पिता रेलवे कर्मचारी रहा है और याची बेदखली के आधार पर यह लाभ लेना चाहता है।

जस्टिस अरुण मोंगा ने यह आदेश यमुनानगर निवासी खुशवंत सिंह द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए आदेश पारित किए। खुशवंत ने हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा 2019 में विज्ञापित क्लर्क पद के लिए आवेदन किया था। इस भर्ती में यह नियम था कि जिनके परिवार में कोई भी सरकारी सेवा में नहीं है, उसके सामाजिक-आर्थिक मानदंड के तहत उन उम्मीदवारों को पांच अतिरिक्त अंक दिए जाएंगे।

याचिकाकर्ता के पिता रेलवे से सेवानिवृत्त हुए थे और उन्‍होंने उसे अप्रैल 2014 में कानूनी तौर पर सभी प्रकार की पारिवारिक संपत्तियों से वंचित कर दिया था। उसके बाद याचिकाकर्ता परिवार से अलग रहने लगा था। यहां तक कि याचिकाकर्ता की अपनी अलग फैमिली आइडी भी है जिसके अनुसार उसके परिवार में कोई भी सरकारी सेवा में नहीं है।

इतना सब होने के बाद भी एचएसएससी ने उसे क्लर्क पद के लिए नीति के तहत अतिरिक्त पांच अंक देने से इन्कार कर दिया। याचिकाकर्ता ने लिखित परीक्षा में भाग लिया था और 63 अंक प्राप्त किए थे। उसे दस्तावेज़ सत्यापन के लिए शार्टलिस्ट किया गया था, लेकिन अंतिम परिणाम में उनका चयन नहीं किया जा सका। उसके अनुसार अगर उसे सामाजिक-आर्थिक मानदंड के तहत पांच अंक दिए जाते तो उसका चयन तय था। इसलिए उसने सामाजिक-आर्थिक मानदंड के लिए हाई कोर्ट से गुहार लगाई थी।

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