हरियाणा: नौकरियों में आरक्षण के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती, बेरोजगारों की बढ़ी मुसीबतें

चंडीगढ़ : हरियाणा सरकार के प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में हरियाणा के मूल निवासियों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने के कानून के खिलाफ याचिका पर हाई कोर्ट ने सुनवाई 9 दिसंबर तक स्थगित कर दी। वीरवार को मामले की सुनवाई के दौरान मामले में सामने आया कि याची पक्ष ने केंद्र सरकार व हरियाणा के श्रम विभाग को इस मामले में प्रतिवादी बनाया है जबकि हरियाणा सरकार को प्रतिवादी नहीं बनाया।

चीफ जस्टिस रविशंकर झा व जस्टिस अरुण पल्ली पर आधारित बेंच ने याचिकाकर्ता को प्रतिवादी सूची में संशोधन करने की छूट देते हुए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। इस मामले में गुरुग्राम की इंडस्ट्रियल एसोसिएशन ने प्रदेश सरकार के इस कानून को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

एसोसिएशन ने अपनी याचिका में कहा है कि इस कानून के लागू होने से हरियाणा से इंडस्ट्री का पलायन हो सकता है तथा वास्तविक कौशलयुक्त युवाओं के अधिकारों का हनन होगा। एसोसिएशन के अनुसार 75 प्रतिशत नौकरियों का आरक्षण संवैधानिक संप्रभुता के प्रविधानों के खिलाफ है।

याचिका में इस कानून पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका के अनुसार, हरियाणा सरकार का यह फैसला योग्यता के साथ अन्याय है। ओपन की जगह आरक्षित क्षेत्र से नौकरी के लिए युवाओं का चयन करना हर तरह से प्रतिकूल है। हरियाणा सरकार का यह फैसला अधिकार क्षेत्र से बाहर का व सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के खिलाफ है। इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।

याचिका के अनुसार धरती पुत्र नीति (हरियाणा के मूल निवासी) योजना के तहत सरकार निजी क्षेत्र में आरक्षण दे रही है है, जो नियोक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि निजी क्षेत्र की नौकरियां पूर्ण रूप से योग्यता व कौशल पर आधारित होती हैं। यह कानून उन युवाओं के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है जो शिक्षा के आधार पर भारत के किसी भी हिस्से में नौकरी करने की योग्यता रखते हैं।

एसोसिएशन के प्रतिनिधि जेएन मंगला की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह कानून योग्यता के बदले रिहायशी आधार पर निजी क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए पद्धति को शुरू करने का एक प्रयास है जो हरियाणा में निजी क्षेत्र में रोजगार संरचना में अराजकता पैदा करेगा। यह कानून केंद्र सरकार की एक भारत श्रेष्ठ भारत की नीति के विपरीत है। कोविड -19 से प्रभावित बाजार को कुछ राहत की जरूरत है लेकिन यह कानून निजी क्षेत्र के विकास को बाधित करेगा और आशंका है कि इसी कारण राज्य से इंडस्ट्री पलायन कर सकती है।

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