OBC आरक्षण में मोदी सरकार का बड़ा फेरबदल, आपके लिए क्या बदला, जानें

नई दिल्ली : नये संविधान संशोधन के अनुसार सभी राज्यों को ओबीसी लिस्ट जारी करने का अधिकार देने वाला विधेयक सरकार ने सोमवार को लोकसभा मे पेश किया. आपको बता दें कि कुछ वक़्त पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को ओबीसी मे शामिल कर आरक्षण देने पर रोक लगा दी. उसी को ख़तम करने के लिए सरकार यह विधेयक लोकसभा मे ला रही है जिससे पूरे देश मे ओबीसी वर्ग को आरक्षण का लाभ मिलेगा तो वहीं विपक्ष के भी 127वें संविधान संसोधन मे अपना समर्थन देने के आसार दिख रहे हैं. साथ ही विपक्ष ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा को 50% से हटाने करने की मांग करने जा रहा है.

 

नए बिल में क्या है?

आपको बता दे कि इस नये बिल के लागू हो जाने के बाद राज्यों को अनुसूचित जातियों की लिस्ट जारी करने का अधिकार मिल जायेगा. 1993 से ही राज्य और केंद्र अनुसूचित जातियों की अलग अलग लिस्ट को जारी करते थे. परन्तु 2018 के संसोधन के बाद राज्य ऐसा नहीं कर पा रहे थे. परन्तु अब इस नये बिल मे 342A में संशोधन किया जायेगा और इसके साथ ही आर्टिकल 338B और 366 में भी संशोधन किया गया है, जिससे 2018 से पहले वाली प्रणाली फिर से लागू हो जाएगी. इसके साथ ही अंदेशा लगाया जा रहा है कि आरक्षण को 50% से अधिक बढ़ाया जायेगा. पर सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए ऐसा ना करने की नसीहत दी है.

बिल पास होने से क्या बदलेगा?

इस बिल के पास होने के साथ ही अलग अलग राज्य अपने क्षेत्रीय जातियों को भी ओबीसी की केटेगरी के अनुसार आरक्षण दे सकेंगे जैसे हरियाणा मे जाट, राजस्थान मे गुर्ज़र,गुजरात मे पटेल, महाराष्ट्र मे मराठा आदि ऐसी अनेको जातियों जो लम्बे समय से आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे है उनको आरक्षण मिल जायेगा.

तो क्या अब सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकारों के आरक्षण के फैसले पर रोक नहीं लगा सकेगा?

इस नये बिल के बाद राज्य अपने अनुसार नयी जातियों को ओबीसी आरक्षण की लिस्ट मे जारी कर सकेंगे पर यदि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक हुई तो सुप्रीम कोर्ट इस पर रोक लगा सकता है क्यूंकि इंदिरा साहनी केस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 50% से अधिक आरक्षण ना होने की बात कही थी.

क्या था यह इंदिरा साहनी केस

आपको बता दे कि 1991 मे पीवी नरसिंम्हा राव की सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने की बात कही थी परन्तु पत्रकार इंदिरा साहनी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे चली गयी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए. परन्तु इसके बावजूद कई राज्यों मे 50% से अधिक आरक्षण दिया जा रहा है जैसे छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, हरियाणा, बिहार, गुजरात, केरल, राजस्थान मे यह सीमा 50% से अधिक है.

इस बिल से क्या है चुनावी फ़ायदा

इस बिल के बाद स्थानीय जातियों को भी ओबीसी केटेगरी की लिस्ट के अनुसार आरक्षण मिल जायेगा, जिससे यह स्थानीय जातियों सरकार से प्रभावित हो जाएगी और अगले चुनाव मे फिर से सरकार के पक्ष मे वोट देंगी. आपको बता दे कि स्थानीय जातियों की राज्यों मे एक अलग धाक होती है. साथ ही इनकी जनसंख्या भी अधिक है और इनका समर्थन किसी भी पार्टी के प्रतिनिधि को विजय दिला सकता है. इसलिए सरकार की नीति है की इस बिल को जल्द से जल्द मंजूरी मिल जाये.

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