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भिवानी के बॉक्सरों में जीत की भूख दिलाएगी टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड, जीत की तड़प क्या होती है-सीखें इनसे

भिवानी : भिवानी के 3 बॉक्सर को ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. ये तीनों मुक्केबाज ये मुकाम ऐसे ही हासिल नहीं कर पाए, यह खेल के प्रति उनका जुनून और लगातार संघर्ष ही था कि इन खिलाड़ियों ने गांव की पगडंडियों से टोक्यो की उड़ान भर ली है.
कोच संजय श्योराण ने इन बॉक्सरो के संघर्ष के बारे में बताते हुए कहा कि ये बॉक्सर अपने हालातों से लड़कर ही इस मुकाम तक पहुंचे हैं. उन्होंने कहा कि यह उनकी जीत के प्रति भूख ही थी जो उन्हें मेडल दिलाने का काम करेगी. इन खिलाड़ियों ने वह दिन भी देखे हैं जब किसी के पास दस्ताने खरीदने के रुपए नहीं थे, किसी को परिवार का सहयोग नहीं मिला. फिर भी सभी बंधनों और मजबूरियों को पीछे छोड़ते हुए सफलता की ओर निरंतर बढ़ रहे हैं.

पूजा बोहरा ने तोड़े सामाजिक बंधन

भिवानी की बॉक्सर पूजा बोहरा के कोच संजय श्योराण ने बताया कि पूजा बोहरा आदर्श महिला विद्यालय की छात्रा थी. संजय श्योराण की पत्नी भी उसी कॉलेज में लेक्चरर थी, जिसके संपर्क में पूजा आई और उसकी प्रेरणा से पूजा ने बॉक्सिंग में करियर बनाने की ठानी. शुरू में उसे अपने परिजनों का सहयोग नहीं मिला. उसे काफी दिक्कतें भी आई. वर्ष 2014 में एशियन गेम्स में पूजा ने कांस्य पदक जीता, उसके बाद से परिजनों ने पूजा का साथ देना शुरू किया. आज पूजा ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर रही है. उन्हें विश्वास है पूजा गोल्ड मेडल जरूर लेकर आएगी.

ऑटो का किराया बचाने के लिए इस्तेमाल की साइकिल

भिवानी के एक और बॉक्सर मनीष कुमार का जीवन भी कम संघर्षमय नहीं रहा है. साल 2008 में बॉक्सिंग की शुरुआत करने वाले मनीष को परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति का सामना भी करना पड़ा, जिसके चलते उसे अभ्यास के हिसाब से डाइट नहीं मिल पाई. अभ्यास के लिए मनीष के पास अच्छे बॉक्सिंग ग्लव्स और बाकी संसाधन भी नहीं थे. हालत ऐसी थी कि ऑटो का किराया बचाने के लिए देवसर से भिवानी साइकिल पर ही आया जाया करते थे. जब मनीष का साईं हॉस्पिटल भिवानी में चयन हुआ, उसके बाद से उसे पर्याप्त डाइट मिलनी शुरू हो गई. जब होली और दिवाली जैसे त्यौहार आते थे, तो मनीष घर नहीं जाता था. कारण था कि कहीं अभ्यास न छूट जाए. रक्षाबंधन का त्योहार भी मनीष ने वीडियो कॉल के जरिए ही मनाया था.

बचपन में बीमार रहने वाले विकास ने अभ्यास के दम पर पाया यह मुकाम

विकास के कोच विष्णु भगवान ने बताया कि 69 किलोग्राम भार वर्ग के बॉक्सर विकास ने मुक्केबाजी का सफर 9 वर्ष की उम्र में शुरू किया था. विकास की माता दर्शना देवी ने बताया कि विकास को बचपन में जुकाम जैसी बीमारियां हो जाती थी. स्वास्थ्य ठीक रहे इसी उद्देश्य से विकास ने बैडमिंटन खेलना शुरू किया, लेकिन धीरे-धीरे उसका रुझान मुक्केबाजी की तरफ हो गया. तब से विकास ने ठान लिया कि भविष्य बॉक्सिंग में ही बनाना है. कोच विष्णु भगवान ने बताया कि विकास दुनिया के छठे नंबर के बॉक्सर हैं.

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