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4 बड़ी वजहें जिस कारण मोदी सरकार को कृषि कानून वापस लेने पड़े

डेस्क: तीन विवादास्पद कृषि कानूनों (agricultural laws) को निरस्त किए जाने के लिए केंद्र सरकार (central government) के फैसले की घोषणा के बाद दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों (border areas) के पास किसानों के प्रदर्शन स्थलों पर कई लोगों ने शुक्रवार को सुबह मिठाइयां बांटी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने इन कानूनों को निरस्त करने की घोषणा गुरु नानक जयंती (Guru Nanak Jayanti) के अवसर पर की है। मोदी ने शुक्रवार को घोषणा की कि सरकार ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला किया है और उन्होंने प्रदर्शनकारी किसानों से घर लौटने की भी अपील की। किसान इन कानूनों के खिलाफ पिछले करीब एक साल से प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इन कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पूरी कर ली जाएगी।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी, जिसके कारण दिये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए हैं।” प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर और दिल्ली-हरियाणा सिंघु बॉर्डर पर लोगों को प्रदर्शनस्थलों पर जलेबी और अन्य मिठाइयां वितरित करते देखा गया। आइए जानते हैं कि मोदी सरकार के इस फैसले के पीछे की 5 बड़ी वजह।

अकाली दल से टूटा 24 साल पुराना रिश्ता
तीनों कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा से उसके सबसे पुरानी साथी शिरोमणि अकाली दल ने सितंबर 2020 में नाता तोड़ लिया था। भाजपा और अकाली दल 1996 से एक-दूसरे के साथी थे। वहीं पंजाब में लोग सार्वजनिक तौर पर बीजेपी के नेताओं का विरोध कर रहे थे। बीजेपी नेताओं को गांवों में घुसने नहीं दिया जा रहा था. यहां तक स्थानीय निकाय के चुनावों में कई जगह लोगों ने बीजेपी नेताओं को चुनाव प्रचार तक नहीं करने दिया। पंजाब में कोई बीजेपी से समझौता करने तक को तैयार नहीं था।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 
कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही निकलता है। बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम यूपी की 110 में से 88 सीटें जीत ली थीं। उसे 2012 के चुनाव में 38 सीटें ही मिली थीं, लेकिन किसान आंदोलन को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि बीजेपी को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नुक्सान हो सकता है। कई जगह बीजेपी नेताओं को गांवों में प्रवेश करने से रोका गया। कई जगह उनकी गाड़ियों पर पथराव हुआ। बीजेपी के बड़े नेता पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाने से कतराने लगे थे।

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देश भर के किसानों में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी
कृषि कानून की वजह से देश भर के किसानों में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी पैदा हो गई थी।  इन कानूनों के विरोध में देश भर में रैलियां निकाली गईं और किसान महापंचायतों का आयोजन किया गया। इस किसान आंदोलन का असर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु तक देखा गया। नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही किसानों का आंदोलन शुरू हो गया था।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बिगड़ती मोदी सरकार की छवि
किसान आंदोलन के कारण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मोदी सरकार की छवि बिगड़ती जा रही थी। स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि वो भारत के किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का समर्थन करती हैं। उन्होंने किसान आंदोलन के समर्थन में एक टूल किट ट्वीट किया था।  किसान आंदोलन का समर्थन करने वालों में अभी अमेरिका की उपराष्ट्रपति पद पर आसीन कमला हैरिस भी शामिल थीं। इसके अलावा कृषि कानूनों के विरोध में ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन आयोजित किए गए थे।

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