दादरी विमान हादसे के 25 साल साल पूरे; आज भी सिहर उठते हैं लोग याद करके

चरखी दादरी : आज से 25 वर्ष पूर्व 12 नवम्बर 1996 को चरखी दादरी के समीप आसमान में दो विमानों की टक्कर से बिजली कौंधी और पलभर में 349 लोग अकाल मौत के शिकार हो गए। सऊदी अरब विमान और कजाकिस्ता के विमान क्रैश होने का मामला बड़े विमान हादसों में शामिल हो गया।

हादसे की फाइल फोटो - Dainik Bhaskar

हादसे की फाइल फोटो

विमान हादसे का वह मंजर याद कर दादरीवासी आज भी सिहर उठते हैं। ‘वां खेतां मा चीलगाड़ी पड़ी है’ कहते हुए, लोग भागते हुए मौके पर पहुंचे तो चारों तरफ शव ही शव पड़े मिले। हादसे में मौत का शिकार हुए लोगों की याद में न तो कोई स्मारक बना है और ना ही दादरी शहर में अस्पताल। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगोडा, तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने भी मौके का निरीक्षण किया था व यहा पर स्मारक बनाने की घोषणा भी की गई थी।

हादसे के बाद बिखरा हुआ सामान

ऐसे हुआ था हादसा

यह हादसा विश्व के दस बड़े हवाई हादसों में दर्ज किया गया था। 12 नवंबर 1996 की शाम को करीबन साढ़े छह बजे सऊदी अरब एयरलाइंस के पायलेट खालिद अल सुबैली ने यात्री विमान बोईंग 763 ने 23 क्रू मेंबर व 289 यात्रियों के साथ दिल्ली से उड़ान भरी थी। इस विमान में ज्यादातर भारतीय लोग थे जो अरब देशों में काम पर जा रहे थे। वहीं कजाकिस्तान एयरलाइंस का मालवाहक विमान 1907 के पायलेट गेन्नादी चेरेपानोव को 12 क्रू मेंबर व 25 अन्य सदस्यों के साथ दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरना था। इस विमान में अरब देशों के सूत व ऊन के व्यापारी भारत आ रहे थे। सांय 6 बजकर 30 मिनट पर सऊदी अरब का विमान 14 हजार फीट की ऊंचाई पर था जबकि कजाकिस्तान का विमान 15 हजार फीट की ऊंचाई से नीचे उतर रहा था। इस दौरान अचानक दोनों विमान तेज गति से एक दूसरे से आमने-सामने टकरा गए थे।

हादसे के बाद खेतों में पड़ा मलबा

जिसमें यात्री विमान गांव टिकान कलां के खेतों व मालवाहक विमान गांव बिरोहड़ की बणी में जा गिरा था। इस घटना का अंदाजा इसी चीज से लगाया जा सकता है लगभग 10 किलोमीटर तक मलबा गिरा। एक साथ सैकड़ों शवों को प्रशासन ने तुरंत प्रभाव से दादरी के सरकारी अस्पताल में भिजवाना शुरू कर दिया था। ट्रैक्टर-ट्रालियों, गाड़ियों में भरकर क्षत-विक्षत शव, मांस के लोथड़े अस्पताल में भेजे गए। ऐसे में 349 शवों को रखने के लिए अस्पताल परिसर भी छोटा पड़ गया था। इस दुर्घटना में सबसे ज्यादा 231 भारतीय, सऊदी अरब के 18, नेपाली 9, पाकिस्तानी 3, अमेरिकन 2, ब्रिटिश 1 नागरिक की मौत हुई थी व 84 की पहचान नहीं हो पाई थी। सभी का अंतिम संस्कार उनके धर्म के अनुसार यहीं पर किया गया था।

राहत कार्य में जूटी टीमें

दिल्ली हाईकोर्ट के जज रमेश चंद्र लाहौटी की रिपोर्ट के अनुसार दुर्घटना का मुख्य कारण कजाकिस्तान विमान के पायलेट द्वारा एटीसी के नियमों का पालन नहीं करना था। हो सकता है बादलों के कारण या संचार व्यवस्था के कारण पायलेट अपने जहाज की वास्तविक ऊंचाई का भान नहीं कर सका था, इसके अलावा भाषा की दिक्कत भी हादसे का कारण बनी।

आग को बुझाते दमकल कर्मी

गांव रामलवास के बलजीत यादव व उमेद सिंह के अनुसार उस हादसे को याद करके आज भी लोगों की रूह कांप उठती है। हादसे के बाद उनके खेतों की जमीन बंजर हो गई व दस किलोमीटर के दायरे में दोनों विमानों के अवशेष व लाशों बिखर गई थी। बाद में किसानों ने कड़ी मेहनत करके बंजर जमीन को खेती लायक बनाया है।

इन खेतों में गिरे थे विमान

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